Saturday, December 03, 2011

Water resource development

मेळघाट में जनसहभाग से भागीरथ प्रयास
सरकारी और सामाजिक योजनाओं में जनसहभाग न होने का ठीकरा हमेशा से मेळघाट के आदिवासी समुदाय पर फोड़ा जाता है. पर नागेश्वरा
 चैरिटेबल ट्रस्ट ने नाबार्ड पुरस्कृत वाड़ी परियोजना के माध्यम से श्रमदान और जनसहभाग को गाँववालों के लिए एक सन्मानजनक आदत बनाया है.
इस साल मानसून के रूठे रहने की वजह से ठण्ड की शुरुवात से ही सभी जलस्त्रोत्र सूखने लगे है. ऐसे में अगर तुरंत जल संवर्धन हेतु सही कदम नहीं उठाये जाते तो खेती पर पूरी तरह से निर्भर आदिवासी किसान फिर से पलायन के दुष्टचक्र में फंसते चले जाते. वाड़ी प्रकल्प के द्वारा लगाये गए आम और आंवले के पौधों को जीवित रखने के लिए भी पानी की जरुरत थी. प्रकल्प के सभी २५ गांवों की गाँव नियोजन समितियों ने इस चुनौती का सामना करने के लिए कमर कसी. प्रकल्प का सहयोग और गाँव के श्रमदान से जल् संसाधनों के विकास की नयी रुपरेखा तैयार की गयी. 

२० नवम्बर से शुरू हुए इस अभियान में अभी तक १५ नए कुँओं का निर्माण, पुराने बांधों की दुरुस्ती, छोटे छोटे वनराई बांधों की निर्मिती जैसे कई काम अमल में आ रहें है . जिस वजह से रबी की फसल के लिए भरपूर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है. रोजगार की तलाश में जिन लोगों ने पहले पलायन का मन बना लिया था, आज वो ही लोग अपने खेतों में बुआई में जुटे है. 

 कुँओं का निर्माण और दुरुस्ती-
इस साल ४० से अधिक नए कुओं को बनाने की योजना है. गाँव की समिति द्वारा १० से १५ फुट की खुदाई श्रमदान से करवाने के बाद आगे की खुदाई और निर्माण कार्य प्रकल्प के अनुदान से करवाया जा रहा है. १०० से ज्यादा पुराने कुओं को भी ठीक करवाया जा रहा है. पर जिनके कुँओं को सुधारा जायेगा उन्हें अपने खेत के आस पास की वाडियों को पानी देने का प्रतिज्ञापत्र देना होता है. और जो वाड़ी धारक इससे लाभान्वित होंगे वे श्रमदान के माध्यम से अपना सहयोग कुंवे की दुरुस्ती में देते है. 

बोरी बांध- 
छोटे छोटे जलप्रवाह और स्त्रोतों के पानी को रोकने का सबसे बढ़िया उपाय है बोरी बांध . मलकापुर, चिचाटी, बोराला, बदनापुर, काजलड़ोह सहित अनेक गांवों में प्रकल्प के लाभार्थियों ने श्रमदान से  कई बाँध बनाये है. प्रकल्प द्वारा  बोरी और सुतली उपलब्ध करवा देने के अलावा तांत्रिक मार्गदर्शन भी किया जाता है. जहाँ शुरुवात में केवल ३० बोरी बंधों का काम प्रस्तावित था वो आज ७० से भी अधिक होनेवाला है.इस पानी का उपयोग वाड़ी के साथ ही फसलों के सिंचन और मवेशियों के पेयजल के रूप में भी हो रहा है.

प्रकल्प द्वारा सभी गांवों में २ बैलगाड़ियाँ , प्रत्येक लाभार्थी को फायबर का ड्रम, गाँव में २ होंडा के पम्पसेट, प्रत्येक पेड़ के सिंचन हेतु २ मटके जलसंसाधन विकास हेतु उपलब्ध करवाकर दिए गएँ है. इस वजह से जहाँ एक ओर पलायन कम हुआ है तो वहीँ दूसरी ओर प्रकल्प के कार्यकर्ताओं द्वारा पलायन किये हुए लोगों को गाँव में वापस लेन के प्रयास जारी है.

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