सरकारी और सामाजिक योजनाओं में जनसहभाग न होने का ठीकरा हमेशा से मेळघाट के आदिवासी समुदाय पर फोड़ा जाता है. पर नागेश्वरा
चैरिटेबल ट्रस्ट ने नाबार्ड पुरस्कृत वाड़ी परियोजना के माध्यम से श्रमदान और जनसहभाग को गाँववालों के लिए एक सन्मानजनक आदत बनाया है.
२० नवम्बर से शुरू हुए इस अभियान में अभी तक १५ नए कुँओं का निर्माण, पुराने बांधों की दुरुस्ती, छोटे छोटे वनराई बांधों की निर्मिती जैसे कई काम अमल में आ रहें है . जिस वजह से रबी की फसल के लिए भरपूर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है. रोजगार की तलाश में जिन लोगों ने पहले पलायन का मन बना लिया था, आज वो ही लोग अपने खेतों में बुआई में जुटे है.
कुँओं का निर्माण और दुरुस्ती-
इस साल ४० से अधिक नए कुओं को बनाने की योजना है. गाँव की समिति द्वारा १० से १५ फुट की खुदाई श्रमदान से करवाने के बाद आगे की खुदाई और निर्माण कार्य प्रकल्प के अनुदान से करवाया जा रहा है. १०० से ज्यादा पुराने कुओं को भी ठीक करवाया जा रहा है. पर जिनके कुँओं को सुधारा जायेगा उन्हें अपने खेत के आस पास की वाडियों को पानी देने का प्रतिज्ञापत्र देना होता है. और जो वाड़ी धारक इससे लाभान्वित होंगे वे श्रमदान के माध्यम से अपना सहयोग कुंवे की दुरुस्ती में देते है.
बोरी बांध-
छोटे छोटे जलप्रवाह और स्त्रोतों के पानी को रोकने का सबसे बढ़िया उपाय है बोरी बांध . मलकापुर, चिचाटी, बोराला, बदनापुर, काजलड़ोह सहित अनेक गांवों में प्रकल्प के लाभार्थियों ने श्रमदान से कई बाँध बनाये है. प्रकल्प द्वारा बोरी और सुतली उपलब्ध करवा देने के अलावा तांत्रिक मार्गदर्शन भी किया जाता है. जहाँ शुरुवात में केवल ३० बोरी बंधों का काम प्रस्तावित था वो आज ७० से भी अधिक होनेवाला है.इस पानी का उपयोग वाड़ी के साथ ही फसलों के सिंचन और मवेशियों के पेयजल के रूप में भी हो रहा है.
good efforts , keep it up
ReplyDelete