वाह आजू भैया ....
३ साल पहले तक आजू झोले अखंडे अचलपुर की एक संतरा वाड़ी में ३०० रूपये सप्ताह की दर से मजदूरी किया करता था. पाँच बच्चों का परिवार पालने के लिए पत्नी को भी लोगों के घर काम करना पड़ता था. चिखलदरा के बामादेही गाँव के आजू के हिस्से तिन भाइयों में बांटकर ढाई एकड़ खेती ही बची थी, वो भी ऐसी उबड़ खाबड़ और बंजर की खेती उसके लिए एक दुष्ट स्वप्न बन कर रह गया था. अपनी मिटटी को छोड़ ७० किलोमीटर दूर दूसरों की गुलामी करते हुए भी आजू के हौसलों ने अभी हिम्मत नहीं हारी थी. गुलामी की इस जिन्दगी में उसके पास अपने बच्चों को देने के लिए मज़बूरी छोड़ के कुछ नहीं होगा इस बात का उसे बखूबी अहसास था. सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए चल रही विविध योजनाओं के बारे में उसने सुना था. आखिरकार आजू ने मजदूरी छोड़ कर फिर से अपनी मिटटी का रुख किया.
आज उसके पास २ भैस २ गायें २ बैल और ३ बकरियां है, वह साल में दो फसल लेता है बरसात में सोयाबीन और ठण्ड में गेहूं -चना , आजू के खेत में केसर आम और आंवलों के पौधे सुनहरे भविष्य की बानगी दे रहें है. उसकी १० वि कक्षा पास एक लड़की की शादी हो गयी है, २ लड़कियां १२ वि कक्षा तक पंहुची, आज सबसे छोटी बेटी शारदा ८ वि कक्षा में पढ़ रही है. तो उससे बड़ा विजय १० वि की तयारी कर रहा है. आजू अखंडे आज नाबार्ड बैंक की वाड़ी परियोजना की बामादेही गाँव नियोजन समिति का समन्वयक है.
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आजू और उसकी पत्नी ने दिन रात कड़ी मेहनत करके पहाड़ी जमीं को खेती योग्य बनाया. प्रोजेक्ट ऑफिस धारणी से डीजल इंजिन प्राप्त किया. रोजगार गेरेंटी योजना से नया कुँवा बनवाया. और आजू की इसी प्रगति वादी सोच को पंख दिए नाबार्ड की वाड़ी पारियोजना ने. ७ साल बाद एक एकड़ जमीन से १ लाख की कमाई का सपना अखंडे परिवार बुन रहा है. प्रकल्प क्रियान्वन संस्था नागेश्वर चैरिटेबल ट्रस्ट भी उनके इन सपनों में रंग भरने के लिए हर कदम उनके साथ है. प्रकल्प कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन से खडी पहाड़ी ढलान पर आम के पेड़ हेतु जो पत्थर का चबूतरे उसने बनाये है, वो उसकी अपने भविष्य का शिल्पकार खुद बनने की कटिबद्धता को दर्शाता है. पौधों में फूटती कोंपलों को
देखकर आजू के चेहरे पर वही ख़ुशी है जो एक बाप को अपने बच्चे को बढ़ता देख होती है.
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