उम्मीदों का बांध
पर्यटन क्षेत्र चिखलदरा की तराई में बसा गाँव चिचाटी जितना सुन्दर है उतना ही इनकी आजीविका का प्रश्न कुरूप है. शहरी जीवन से अलग थलग पड़े चिचाटी गाँव में उबड़ खाबड़ जमीन का सीना चिर कर अनाज उगने के सिवा रोजी का कोई दूसरा साधन नहीं है. उसमें भी जंगली जानवरों का भय और जल संसाधनों का अभाव परिस्तिथि को बदतर कर रहा है. गाँव के पीछे बने एकमात्र बाँध में पिछले कई सालों से दरवाजे न होने से पहाड़ से उतरने वाला एक बूंद पानी भी सहेजना मुश्किल था.
गाँव में इसी साल से शुरू हुए नाबार्ड वाड़ी परियोजना की गाँव नियोजन समिति ने प्रकल्प क्रियान्वन संस्था नागेश्वरा चैरिटेबल ट्रस्ट से इस बांध में गेट लगाने का अनुरोध किया. गेट निर्माण का खर्च प्रकल्प द्वारा और बांध की सफाई और मिटटी भरने का श्रमदान गाँव का होगा यह बात तय हुई. बांध के दरवाजे का खांचा टेढ़ा होने की वजह से गेट की फिटिंग नामुमकिन हो गयी, पर गाँव वालों के सहकार्य से बांध के खांचे तोड़ कर सीधे किये गए और लोहे के दरवाजे लगाये गए.
दो दिन में ही बांध पानी से लबालब भर गया. अब चिचाटी के कई किसान पलायन की बजाय ठण्ड में गेहूं और चने की फसल की तयारी कर रहे है. प्रकल्प के एक कार्यकर्त्ता डॉ.अमोल मामनकर तो पिछले कई दिनों से इसी गाँव में रह रहे है. सामाजिक परिवर्तन के सहभागिता के सिद्धांत को चरितार्थ करते हुए अमोल ने आज इस गाँव को अपना परिवार बना लिया है. वाड़ी प्रकल्प के माध्यम से लगी आम और आंवले की वडियों की देखभाल के गुर सिखाने के साथ ही वह किसानों के जानवरों का निशुल्क इलाज भी कर रहा है. आज इस गाँव में मुर्गी पालन , गाय की प्रजाति सुधार जैसे प्रयास भी जोरों पर है.
गाँव में इसी साल से शुरू हुए नाबार्ड वाड़ी परियोजना की गाँव नियोजन समिति ने प्रकल्प क्रियान्वन संस्था नागेश्वरा चैरिटेबल ट्रस्ट से इस बांध में गेट लगाने का अनुरोध किया. गेट निर्माण का खर्च प्रकल्प द्वारा और बांध की सफाई और मिटटी भरने का श्रमदान गाँव का होगा यह बात तय हुई. बांध के दरवाजे का खांचा टेढ़ा होने की वजह से गेट की फिटिंग नामुमकिन हो गयी, पर गाँव वालों के सहकार्य से बांध के खांचे तोड़ कर सीधे किये गए और लोहे के दरवाजे लगाये गए.
दो दिन में ही बांध पानी से लबालब भर गया. अब चिचाटी के कई किसान पलायन की बजाय ठण्ड में गेहूं और चने की फसल की तयारी कर रहे है. प्रकल्प के एक कार्यकर्त्ता डॉ.अमोल मामनकर तो पिछले कई दिनों से इसी गाँव में रह रहे है. सामाजिक परिवर्तन के सहभागिता के सिद्धांत को चरितार्थ करते हुए अमोल ने आज इस गाँव को अपना परिवार बना लिया है. वाड़ी प्रकल्प के माध्यम से लगी आम और आंवले की वडियों की देखभाल के गुर सिखाने के साथ ही वह किसानों के जानवरों का निशुल्क इलाज भी कर रहा है. आज इस गाँव में मुर्गी पालन , गाय की प्रजाति सुधार जैसे प्रयास भी जोरों पर है.